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क्या है वोक कल्चर? जानें इसके प्रभाव और भारत में इसकी स्थिति

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वोक कल्चर का परिचय

वोक कल्चर की जानकारी हिंदी में

वोक कल्चर की जानकारी हिंदी में

वोक कल्चर की जानकारी हिंदी में: आज के डिजिटल युग में कई नए सामाजिक और सांस्कृतिक शब्द आम बातचीत का हिस्सा बन गए हैं। इनमें से एक है 'वोक' (Woke)। यह अब केवल एक अंग्रेजी शब्द नहीं रह गया है, बल्कि एक वैश्विक सांस्कृतिक आंदोलन बन चुका है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में भी 'वोक कल्चर' तेजी से फैल रहा है और समाज के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित कर रहा है।


वोक कल्चर का अर्थ और उत्पत्ति वोक कल्चर का अर्थ और उत्पत्ति

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‘वोक’ शब्द की उत्पत्ति अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय से हुई थी और इसका मूल अर्थ था, सामाजिक अन्याय खासकर नस्लीय भेदभाव के प्रति जागरूक रहना। इसका पहली बार उल्लेख 1938 में ब्लूज़ संगीतकार लीड बैली के गीत 'Scottsboro Boys' में 'stay woke' के रूप में हुआ था। 1940 के दशक में भी यह शब्द नस्लीय अन्याय के खिलाफ सतर्कता के प्रतीक के रूप में प्रयोग होता रहा। 2008 में एरिका बादु के गीत 'Master Teacher' ने इसे फिर से आधुनिक संदर्भ में लोकप्रिय बनाया। 2014 में जब ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन शुरू हुआ तब 'stay woke' एक जागरूक नागरिक की पहचान बन गया जो पुलिस बर्बरता और नस्लीय असमानता के खिलाफ खड़ा होता है। समय के साथ यह शब्द सिर्फ नस्लीय न्याय तक सीमित नहीं रहा बल्कि इसमें लैंगिक समानता, LGBTQ+ अधिकार, सामाजिक न्याय, पर्यावरण संरक्षण और धार्मिक सहिष्णुता जैसे मुद्दे भी शामिल हो गए। हालांकि जैसे-जैसे यह शब्द लोकप्रियता हासिल करता गया, वैसे-वैसे कुछ राजनीतिक और सांस्कृतिक हलकों में इसका इस्तेमाल व्यंग्यात्मक और नकारात्मक अर्थों में भी होने लगा।
वोक संस्कृति के प्रमुख तत्व वोक संस्कृति के प्रमुख तत्व

वोक कल्चर केवल एक सोच नहीं बल्कि सामाजिक बदलाव की एक सक्रिय धारा है, जिसके विभिन्न पहलुओं को समझना जरूरी है। इसका पहला आधार है सामाजिक जागरूकता जो समाज में किसी भी तरह के अन्याय, भेदभाव या उत्पीड़न के खिलाफ सतर्क रहकर आवाज उठाने को प्रेरित करता है, चाहे वह नस्लीय हो, लैंगिक हो या आर्थिक असमानता से जुड़ा हो। दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष है राजनीतिक शुद्धता (Political Correctness) जिसके अंतर्गत किसी भी जाति, वर्ग, धर्म या लिंग के प्रति सम्मानजनक भाषा और व्यवहार अपनाना अनिवार्य माना जाता है ताकि किसी समुदाय की भावनाओं को ठेस न पहुँचे। तीसरा पहलू है कैंसल कल्चर जिसमें अगर कोई व्यक्ति या संस्था वोक मूल्यों के विरुद्ध कोई कार्य करती है, तो उसे सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर बहिष्कृत किया जा सकता है। हालाँकि यह पक्ष विवादास्पद है क्योंकि कई बार यह न्याय की जगह भीड़तंत्र का रूप भी ले लेता है। अंततः सांस्कृतिक समावेशन (Inclusivity) वोक संस्कृति का मूल स्तंभ है जो सभी वर्गों और समुदायों को समान प्रतिनिधित्व और अवसर देने की बात करता है। यह समावेशिता सामाजिक न्याय और वास्तविक समानता की दिशा में एक अनिवार्य कदम मानी जाती है।


भारत में वोक कल्चर का आगमन भारत में वोक कल्चर का आगमन

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भारत में हाल के वर्षों में सोशल मीडिया और वैश्विक प्रवृत्तियों (ग्लोबल ट्रेंड्स) के प्रभाव से सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता और संवाद में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने खासकर युवाओं को जातिवाद, पितृसत्ता, धार्मिक असहिष्णुता और लैंगिक भेदभाव जैसे संवेदनशील विषयों पर खुलकर अपनी बात रखने का अवसर दिया है। कॉलेजों, फिल्म इंडस्ट्री, कॉर्पोरेट जगत और राजनीति जैसे क्षेत्रों में अब विविधता, समावेशन और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर गंभीर बहसें और नीतिगत बदलाव सामने आ रहे हैं। इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2025 भी इस बात की पुष्टि करती है कि देश के संगठनों में अब Diversity, Equity और Inclusion (DEI) को प्राथमिकता दी जा रही है, जो वोक कल्चर की मूल भावना के अनुकूल है। साथ ही राजनीतिक और सांस्कृतिक विमर्शों में अब जाति, धर्म और लिंग आधारित असमानताओं पर अधिक जागरूकता और खुलापन देखने को मिल रहा है जो भारत में सामाजिक बदलाव की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है।
वोक कल्चर के सकारात्मक पहलू वोक कल्चर के सकारात्मक पहलू

वोक कल्चर ने भारतीय समाज में कई सकारात्मक बदलावों की नींव रखी है, विशेषकर उन वर्गों के लिए जो लंबे समय तक हाशिए पर रहे। इस संस्कृति ने दलित, महिलाएं, ट्रांसजेंडर और LGBTQ+ समुदाय जैसे वंचित वर्गों को अपनी बात कहने और समाज में अपनी पहचान दर्ज कराने का मंच दिया है। सोशल मीडिया और जन आंदोलनों के माध्यम से इनकी आवाजें अब मुख्यधारा में सुनी जाने लगी हैं। वोक सोच ने पितृसत्ता, जातिवाद और धार्मिक कट्टरता जैसी पुरानी सामाजिक बुराइयों को खुली चुनौती दी है और समावेशी तथा प्रगतिशील विचारों को मजबूती दी है। इसके प्रभाव से आज की युवा पीढ़ी पहले से कहीं अधिक सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों के प्रति जागरूक हो गई है – वे अब सवाल करते हैं, संवाद करते हैं और बदलाव की मांग करते हैं। इसके साथ ही कला, साहित्य, फिल्म और वेब सीरीज़ जैसे माध्यमों में भी वंचित वर्गों की कहानियाँ खुलकर सामने आ रही हैं। जो कलात्मक स्वतंत्रता और सामाजिक चेतना के विस्तार का संकेत हैं और इसके पीछे वोक संस्कृति की प्रेरणा को नकारा नहीं जा सकता।


वोक कल्चर के नकारात्मक पहलू वोक कल्चर के नकारात्मक पहलू

हालाँकि वोक कल्चर ने समाज में जागरूकता और समावेशिता को बढ़ावा दिया है लेकिन इसके कुछ आलोचनीय पक्ष भी हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आलोचकों का मानना है कि इस संस्कृति के चलते समाज में अत्यधिक संवेदनशीलता आ गई है। जहाँ छोटी-छोटी बातों को भी आपत्तिजनक मान लिया जाता है जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित होती है। विशेष रूप से सोशल मीडिया पर यह प्रवृत्ति तेज़ी से देखने को मिलती है, जहाँ शब्दों और विचारों पर तुरंत प्रतिक्रिया दी जाती है। इसके साथ ही वोक संस्कृति से जुड़ा कैंसल कल्चर कई बार क्रूर रूप ले लेता है, बिना पूर्ण तथ्यों के ही किसी व्यक्ति या संस्था को ट्रोल कर दिया जाता है, जिससे उनके करियर और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। वोक विचारधारा पारंपरिक भारतीय रीति-रिवाजों को अक्सर पिछड़ा या दमनकारी बताकर खारिज कर देती है, जिससे सांस्कृतिक टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है। साथ ही एक बड़ी आलोचना यह भी है कि कई लोग वोक मूल्यों का प्रचार सिर्फ सोशल मीडिया पर अपनी छवि बेहतर दिखाने के लिए करते हैं, लेकिन असल जीवन में वे उन सिद्धांतों को नहीं अपनाते। इस सतही समर्थन को performative activism या मौकापरस्त पाखंड भी कहा जाता है जो वोक कल्चर की विश्वसनीयता को चुनौती देता है।


वोक बनाम संस्कृति वोक बनाम संस्कृति

भारत में वोक कल्चर के प्रसार ने एक नई बहस को जन्म दिया है परंपरा और आधुनिकता के बीच संघर्ष की बहस। जैसे-जैसे सामाजिक न्याय और समानता पर जोर बढ़ा है वैसे-वैसे कुछ लोगों ने भारतीय ग्रंथों जैसे रामायण और महाभारत, तथा अवधारणाओं जैसे कर्म और धर्म की आलोचना शुरू की है, उन्हें पितृसत्तात्मक या जातिवादी कहकर खारिज किया गया है। हालांकि इसके विपरीत एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो मानता है कि भारतीय संस्कृति स्वयं में अत्यंत समावेशी, सहिष्णु और विविधताओं को अपनाने वाली रही है। उनके अनुसार भारतीय मूल्यों को वोक कल्चर के पश्चिमी चश्मे से नहीं परखना चाहिए। इस परिस्थिति में सबसे जरूरी है संतुलन बनाना। ऐसा संतुलन जहाँ एक ओर आधुनिक सोच, समानता और सामाजिक न्याय को अपनाया जाए तो दूसरी ओर अपनी सांस्कृतिक विरासत, परंपराओं और उनके सकारात्मक पक्षों का सम्मान भी बना रहे। यही संतुलन भारत को एक प्रगतिशील लेकिन जड़ों से जुड़ा हुआ समाज बना सकता है।


वोक कल्चर और सोशल मीडिया वोक कल्चर और सोशल मीडिया

सोशल मीडिया आज वोक कल्चर का सबसे प्रभावशाली मंच बन चुका है खासकर ट्विटर, इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर। इन माध्यमों के जरिए लोग जातिवाद, लैंगिक भेदभाव, सामाजिक असमानता और धार्मिक असहिष्णुता जैसे मुद्दों पर खुलकर अपनी आवाज उठा रहे हैं। पुरानी फिल्मों, किताबों, विज्ञापनों और हास्य प्रस्तुतियों की भी आलोचना की जाती है, जो आज के सामाजिक मूल्यों के अनुरूप नहीं मानी जातीं। #MeToo, #BlackLivesMatter, और #DalitLivesMatter जैसे अभियानों ने इसी सोशल मीडिया के जरिए वैश्विक और स्थानीय स्तर पर व्यापक बदलाव की मांग को जन्म दिया है। हालांकि इस प्रभावशाली माध्यम का एक नकारात्मक पक्ष भी है। कई बार यही मंच 'ट्रोलिंग' और 'ऑनलाइन शेमिंग' का अड्डा बन जाता है जहाँ बिना ठोस तथ्यों के किसी व्यक्ति को बदनाम कर दिया जाता है। इससे न केवल उनकी सामाजिक छवि और करियर पर असर पड़ता है बल्कि यह कैंसल कल्चर का चरम रूप लेकर स्वतंत्र अभिव्यक्ति को भी खतरे में डाल सकता है।


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